Homeभारतराजस्थान‘गोत्र’ के आधार पर चुनावी अभियान कहां तक उचित ?

‘गोत्र’ के आधार पर चुनावी अभियान कहां तक उचित ?

राजस्थान में विधानसभा चुनाव 2018 खासा चर्चाओं में छाया हुआ हैं। इसका एक कारण तो पिछले काफी समय से सत्ता परिवर्तन है ही दूसरा मुद्दा राजनिति का एक निम्म स्तर बयां करता हैं। जी हां राजस्थान में राजनिति का एक अलग ही चेहरा सामने आया है जो गन्दी राजनीति का ताजा उदाहरण पेश करती हैं। राज्यों में जाति के आधार पर वोटिंग होना एक आम बात है, मगर राजस्थान इस मामले में एक कदम आगे निकला हैं। राजस्थान में 15वीं विधानसभा के लिए 7 दिसंबर को चुनाव होने जा रहे है। राजस्थान में होने जा रहे विधानसभा चुनावों में इस बार हो हल्ला जाति और गोत्र को लेकर हो रही है।

चुनावी सहगर्मी में दोनों ही दिग्गज पार्टियां गोत्र के भंवर जाल में फंसती नजर आ रही हैं। आलम ये है पीएम नरेन्द्र मोदी भी चुनावी रैली, सभा में गोत्र पर बोलने से नहीं चूकते। तो वहीं कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी भी गोत्र को लेकर टिका टिप्पणी करने से नहीं चूके। राजस्थान की सियासत में भी बीते दो तीन चुनावों से तो एक ही जाति के भीतर एक गोत्र की दूसरे के बीच प्रतिस्पर्धा बड़ी तेजी से बढ़ी है।

चुनाव अभियान चरम पर, राहुल गांधी 1 दिसम्बर को उदयपुर में

गोत्र के आधार पर न केवल विभिन्न दलों में टिकटों के दावेदारों की संख्या बढ़ी है, बल्कि वोट देने का आधार भी गोत्र ही बन चुका है। इसका सबसे अधिक प्रचलन मीणा जाति के लोगों में देखने को मिला है। यदि चुनाव में मीणा जाति का कोई एक उम्मीदवार खड़ा होता है तो उनमें एकता देखने को मिलती है मगर वहीं जब किसी सीट पर दो या दो से अधिक मीणा जाति के उम्मीदवार होते है तो लोगों में सगोत्री उम्मीदवार के प्रति उदारता देखी जाती हैं।

इस बार भी 15वीं विधानसभा के चुनाव में दौसा जिले के लालसोट और सवाईमाधोपुर के बामनवास विधानसभा सीटों के लिए कुछ ऐसी ही रणनिति देखने को मिल रही हैं। लालसोट विधानसभा सीट से कुल पांच उम्मीदवार चुनाव मैदान में हैं और सभी मीणा जाति के हैं। इनमें से भाजपा के राम विलास मीणा डोबवाल गोत्र के हैं, जबकि कांग्रेस प्रत्याषी परसादी लाल मीणा का गोत्र जोरवाल है। ऐसे में दोनों गोत्र के लोग अपने सगोत्रीय मीणा के पक्ष में खड़े नजर आ रहे हैं।

वहीं जयपुर जिले की आमेर सीट पर प्रशांत शर्मा को टिकट दिए जाने से बागड़ा ब्राह्मण बहुल इस सीट पर कांग्रेस का विरोध शुरू हो गया है।  बागड़ा गोत्र के ब्राह्मणों और उनसे जुड़े संगठनों ने कांग्रेस प्रत्याशी की खिलाफत शुरू कर दी है। बागड़ा समाज की नाराजगी से एक दर्जन से अधिक सीटों पर कांग्रेस प्रत्याशियों की जीत का समीकरण बिगड़ सकता हैं।

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