राजस्थान में बुधवार को छात्र संघ चुनाव की मतगणना हुई. जब भी मतगणना होती है तो नेताओं की सांस फूली रहती है. सांस किसी की भी फूले उसके परिणाम खतरनाक होते है. सांड को तो सब जानते ही है. जब सांड की सांस फूल जाती है तो उसका नतीजा क्या होता है. खाकी को भी इसका अंदाजा होता है. तो हम थे मतगणना पर. छात्र संघ की मतगणना. प्रदेश भर में छिटपुट घटनाएं. पुलिस पहले से सचेत. छात्र नेताओं की परिणाम के इंतजार में फूली सांस तो पुलिस की उनके नतीजे के बाद की स्थिति को संभालने के लिए फूली सांस. जब सब की स्थिति ऐसी हो जाये तो कुछ तो गलत होना ही था.
अब यहां खड़ा होता है एक सवाल. सांस खाकी और खादी दोनों की फूली है. गलती करेगा कोन. लेकिन इस बार गलती कर दी खाकी ने. अलवर में चुनाव की मतगणना में लगा धांधली का आरोप. छात्र सड़को पर आ गये. ये कोई नयी बात नही. प्रदेश में हर बात 1 दिन का ऐसा ही हो हल्ला रहता है. सड़कों पर आते है, फिर वापस चले जाते है. बंदर सेना है भईया. बस नियंत्रण करने की कला चाहिये. लेकिन इस बार मदारी की भेष में थी कम अकल खाकी. कम अकल इसलिये क्यों कि अकल होती तो शायद कैमरों के सामने तो ऐसा कांड नही होता. कांड ये था कि रात करीब साढे 9 बजे छात्र और उनके समर्थक जा रहे थे कलेक्टर को पत्र देने, शिकायत का पत्र देने जो कि लोकतंत्र में सबको अधिकार के रुप में मिला है. यहां तक सब ठीक था. इस दौरान एक रिटायर्ड फोजी अंकल बच्चों को समझाने आ गये. समझाईश करना भी लोकतंत्र का ही हिस्सा है. लेकिन ये समझाईश पूरी भी नही हुई थी. बातचीत चल रही थी कि अचानक पुलिस की लाठियों की आवाज़े आने लगी.
बंदर सेना पर ऐसे हमले की तस्वीरे तो कई बार देखी गयी है. हमला इसलिए क्यों कि बिना चेतावनी दिये अचानक लाठीचार्ज. लेकिन एक रिटायर्ड फोजी पर भी लाठीचार्ज. थप्पड़े. कपड़े तक फाड़ दिये. लोकतंत्र के लिए शर्मनाक. क्योंकि उसी का एक स्तंभ एक निर्दोष पर अत्याचार कर रहा था. 62 साल के इस फोजी पर शायद ही किसी ने जीवन में हाथ उठाया होगा. लेकिन 62 साल की तपस्या को दो मिनट में ही खाकी के भेष में आये इन (शब्द नही है) ने खत्म कर दी. शरीर पर शायद ज्यादा घाव ना हुए हो लेकिन उनके आत्म सम्मान पर चोट ज़रुर पहुंची होंगी.
अलवर ही नही पूरे राजस्थान में पुलिस की इस घटना की निंदा हुई. लेकिन साहब ये तो अलवर पुलिस है. इनकी चमड़ी अन्य पुलिस वालों से मोटी बनाने के लिए घुट्टी पिलायी जाती है. तभी तो हर साल खाकी पर दाग लगते है. कई बार दाग अच्छे भी होते है. लेकिन यहां की पुलिस जो दाग लगा रही है, वो दाग पूरे विभाग को दागदार बना रहे है. ये दाग कभी पहलू खां के रुप में होते है, तो कभी रकबर के रुप में. यहां कि पुलिस तो साहब महिलाओं की इज्जत भी नही समझती तभी तो बदमाश पति के सामने उसकी पत्नी को नोचते रहते है और वो पत्नी हिम्मत करते थाने पहुंचती है तो पुलिस मुकदमा दर्ज नही करती.
अब तो पुलिस कहने लगी है कि यहां अपराधियों से सबसे ज्यादा चुनौती मिलती है. लेकिन क्या अपराधियों को यहां पनपने के लिए किसी ओर को जिम्मेदार कहा जायेगा. शुरुआत में ही नकेल कस दी जाती तो ये नौबत ही नही आती. लेकिन घुट्टी तो यहां के पुलिसवालों को बचपन में ही जो पिला दी गयी थी. शुरु से ही कमजोर को दबाने की कला विरासत में यहां कि पुलिस को जो मिलती रही है. यहां के मामले हर बार पुलिस मुख्यालय ही नही बल्कि दिल्ली के दरवाजों तक पहुंचते है. लेकिन फिर भी असर नही. पुलिस मुख्यालय में बेठे बड़े साहब ने अब भी अगर अलवर की हवाओं को बदलने की कोशीश नही कि तो बहुत देर हो जायेगी. जल्द ठोस कदम उठाने होंगे वर्ना इसके परिणाम भयावह हो सकते है।