वसुंधरा के खिलाफ लोगों की नाराजगी को क्या मोदी कर पायेंगे दूर?

राजस्थान विधानसभा चुनाव का प्रचार प्रसार अतिंम दौर पर है। मतदान के लिए महज 2 दिन का वक्त बचा है। 7 दिसंबर को राज्य की 200 सीटों के लिए एक ही चरण में मतदान होना है। इस बार राजस्थान विधानसभा चुनाव में अपनी लाज बचाने और अपनी जगह बनाए रखने के लिए भाजपा की सरकार हर संभव कोशिश में लग गई है।

चुनाव प्रचार की शुरुआत में भाजपा के पार्टी नेताओं ने ये सोच लिया था कि इस बार अपनी लाज बचानी मुश्किल होगी लेकिन, धीरे-धीरे जैसे ही चुनाव प्रचार ने जोर पकड़ा, पार्टी ने प्रचार की रणनीति शुरू कर दी। पहले जब चुनाव एकतरफा नजर आ रहा था, लेकिन अब बीजेपी फिर से प्रचार के लिए जोरों शोरों से नजर आ रही है ।

बीजेपी के सूत्रों के मुताबिक, पहले बीजेपी को डर था कि मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे के खिलाफ जो लोगों का गुस्सा है उसके कारण उनकी सरकार गिर सकती है। लेकिन आपको बता दें कि जब से कांग्रेस ने अपनी पार्टी के प्रचार पर जोर किया है तब से भाजपा ने भी अपनी रणनीति बदलकर सम्मानजनक प्रदर्शन के लिए चुनाव अभियान को काफी तेज किया।

पार्टी अध्यक्ष अमित शाह ने भी चुनाव प्रचार के लिए कमान अपने हाथों में ली। संघ के सहयोग ने भी बीजेपी की मुश्किलों को काफी कम कर दिया है।

चुनाव के दौरान जब प्रधानमंत्री ने अपनी रैलियों की संख्या बढ़ाई तो सभी को एक आस नजर आ रहीं है। प्रधानमंत्री मोदी ने लगातार तीन दिन चुनावी रैलियों को संबोधित किया। दरअसल बीजेपी मानती है कि आखिरी दो-तीन दिनों में लगभग चार से पांच फीसदी तक वोटर अपना निर्णय लेता है कि किस पार्टी के साथ जाना है। बीजेपी ने अपनी इसी रणनीति के तहत सभी को अपना बनाने की कोशिश की।

पार्टी सूत्रों के मुताबिक, राजस्थान में बीजेपी के खिलाफ नहीं बल्कि मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे के खिलाफ लोगों में गुस्सा है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को लेकर लोग नाराज नहीं हैं। पार्टी सूत्रों का कहना है कि लोगों में बस वंसुधरा को लेकर गुस्सा भरा है।


दरअसल, बीजेपी की चिंता विधानसभा चुनाव से ज्यादा लोकसभा चुनाव को लेकर चिंतित है उनका मानना है कि अगर विधानसभा चुनाव में पार्टी का सफाया हो गया तो राजस्थान में लोकसभा चुनाव में उसका सीधा असर हो सकता है। चुनावी प्रचार में इतना कुछ करने के बाद भी अगर पार्टी की हार होती है तो ये हार एकतरफा नहीं होगी। इस बार इस कांटे की टक्कर में देखना यह है कि आखिर जीत का ताज किस पार्टी के सिर पर सजता है।

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