बड़ी समृद्ध रही है राजस्थानी लोक नृत्य की परंपरा – डॉ. भरत ओला

(लेखक केन्द्रीय साहित्य अकादमी से पुरस्कृत वरिष्ठ साहित्यकार है)

जयपुर। राजस्थानी लोक नृत्य, राजस्थानी लोक नृत्य की परंपरा बड़ी समृद्धि और प्राचीन रही है। राजस्थानी ख्याल, रम्मत, गवरी, तमाशा, स्वांग, फड़, लीला, नौटंकी आदि लोक नाट्य किसी परिचय के मोहताज नहीं हैं। आइए जानते हैं इन्हें लोकनाट्य के बारे में।

ख्याल

ख्याल की विषय वस्तु ऐतिहासिक एवं पौराणिक होती है। इसे इतिवृत्तात्मक गाथा कह सकते हैं, जो अभिनय के साथ-साथ नाच गाकर सुनाई जाती है। क्षेत्रीय बोलियों के आधार पर ख्यालों में विविधता भी पाई जाती है। कुचामन ख्याल, शेखावाटी ख्याल, उदयपुरी ख्याल, तुर्रा कलंगी ख्याल, किशनगढ़ ख्याल, नौटंकी ख्याल आदि प्रसिद्ध ख्याल हैं।

गवरी

यह मुख्यतः भीलो का लोक नृत्य है। इसको हम गीत नाट्य भी कह सकते हैं। विचित्र आदिवासी वेशभूषा, मेकप और मुखोटों की सहायता से गवरी लोकनाट्य मानसून की समाप्ति के बाद खेला जाता है।यह लंबे वक्त तक चलने वाला समारोह है। इसमें चौगान में एक बांस गाड़ दिया जाता है। यहीं गवरी की कथा चलती है। यह शिव पार्वती से संबंधित होती है। इसमें मादल और थाली की तान के साथ संगीतात्मक कथा नृत्य होता है।

तमासा

वैसे तो सभी लोकनाट्य खुले मंच पर मंचित होते हैं लेकिन तमाशा विशेष तौर पर खुले मंच पर खेला जाता है। तमाशा जयपुर में 19वीं शताब्दी से पूर्व आरंभ हुआ। संगीत, नृत्य और राग- रागिनी के माध्यम से तमाशे की कथा परवान चढ़ती है। इसमें पौराणिक और प्रेमाख्यान की कथाएं अधिक गाई जाती है।

रम्मत

बीकानेर की रमत पूरे देश में प्रसिद्ध है। यह होली के अवसर पर खेली जाती है। ऐतिहासिक और धार्मिक चरित्रों की रम्मतें विशेष प्रिय रही हैं।पात्रों की वेशभूषा, मेकअप के साथ कलाकार का संवाद और गायन इसमें विशेष प्रभाव डालता है। ढोल नगाड़े के साथ रम्मत खेली जाती है। रम्मत में कलाकार दर्शकों का मनोरंजन भी भरपूर करते हैं। उनके संवाद दर्शकों को विशेष प्रभावित करते हैं।

स्वांग- स्वांग वैसे तो रूप धारण करने से संबंधित है। दरअसल यह पौराणिक या ऐतिहासिक कथानक या पत्र की वेशभूषा और रंग रूप में नकल की जाती है, जिसे स्वांग भरना कहते हैं। इसमें एक ही पात्र अभिनय करता है। लोगों के मनोरंजन के लिए विशेष समारोह या विवाह शादी में भी कलाकार स्वांग रचते हैं।

फड़

फड़ का आयोजन घर के आंगन या सार्वजनिक चौक में किया जाता है। जिसे फड़ बांचना कहते हैं। घर का मुखिया या मोहल्ले का प्रमुख व्यक्ति भोपा और भोपी को इसके लिए विशेष रूप से आमंत्रित करता है। भोपा हाथ में रावण हत्था लेकर बाबूजी या दूसरे किसी लोक देवता की कथा बखाणते हैं। पांच फुट चौड़े और तीस फुट लंबे कपड़े पर पाबूजी या दूसरे लोक देवता की शौर्य गाथा चित्रित होती है, जो एक बांस के चारों ओर लिपटी होती है। चित्रित फड़ को दर्शकों के सामने तान दिया जाता है। इसके सामने ही भोपा नायक की शौर्य गाथा नाच गाकर सुनाता है। फड़ बांचना शुभ माना जाता है। इसमें भोपी का विशेष रोल होता है। वह अपनी सुरीली आवाज से भोपे के पीछे पूरी कथा कहती है। रावण हत्थे के साथ साथ कभी कभार दूसरे वाद्य यंत्रों का प्रयोग भी किया जाता है।

लीला- लीला के माध्यम से राम और श्रीकृष्ण की चरित्र कथा को दर्शकों के सामने दर्शाया जाता है। श्रीकृष्ण की चरित्र कथा को रासलीला और श्री राम की चरित्र कथा को रामलीला कहा जाता है। लीला का मंचन मंच पर किया जाता है। इसमें भी अभिनय के साथ-साथ संवाद और संगीत की प्रधानता रहती है।

नौटंकी

नौटंकी में भी पौराणिक और ऐतिहासिक चरित्रों के आख्यान खेले जाते हैं। नौटंकी सामाजिक समारोह और मेलों आदि में विशेष तौर से खेली जाती है। यह राजस्थान के अतिरिक्त उसके सीमावर्ती प्रदेश हरियाणा और उत्तर प्रदेश के क्षेत्रों में विशेष रूप से खेली जाती है।

भवाई- गुजरात से सटे राजस्थान के सीमा क्षेत्रों में भवाई नृत्य नाटिका बहुत प्रसिद्ध है। भवाई को भोपा और भोपी विनोद पूर्ण शैली में खेलते हैं। भवाई को भी यजमान आयोजित करते हैं।

बहुरूपिया

बहुरूपिया कला को भी हम लोकनाट्य की श्रेणी में ले सकते हैं, हालांकि इसमें एक या दो व्यक्ति ही बहुरुपिये का वेश धारण करते हैं। इसके लिए कोई विशेष स्थान या मंच नहीं होता बल्कि बहुरूपिया जगह-जगह घूम घूम कर अपनी कला का प्रदर्शन करते हैं। यह कलाकार विभिन्न चरित्रों का रूप धारण कर लोगों का मनोरंजन करते हैं कई बार तो लोग उनके धरे रूट को देखकर धोखा खा जाते हैं कि यह बहुरूपिया है या असली कोई किरदार बहु रुपयों की यही आजीविका का साधन है हालांकि यह लोक कला विलुप्त होने के कगार पर है जिसे बचाया जाना बहुत जरूरी है।

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