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शेखर की शिखर पर पहुंचने की कहानी, हर कदम पर चुनौतियों ने ली परीक्षा

यूपीएससी सिविल सर्विस की परीक्षा पास करने की बात हो और चुनौतियों का जिक्र ना हो ऐसा हो ही नहीं सकता है. शिखर पर पहुंचने की कड़ी में हम बात करते हैं देश के उन लोगों की जिन्होंने जीवन की हर चुनौती से सामने करते हुए अपने लक्ष्य को प्राप्त किया. इसी कड़ी में बिहार के एक छोटे से गांव से निकले शेखर कुमार की बात करने जा रहे हैं. जिन्होंने जीवन में आई हर चुनौती का सामना ना सिर्फ डटकर किया साथ ही अपने सपने को भी पूरा किया.

हिंदी मीडियम स्कूल में की पढ़ाई, अंग्रेजी में हाथ था तंग

शेखर कुमार का जीवन शुरूआत से ही संघर्षों से भरा रहा है, बिहार के छोटे से गांव में रहने वाले शेखर कुमार की प्रारंभिक पढ़ाई हिंदी मीडियम स्कूल से हुई. लेकिन बाद में अंग्रेजी स्कूल में डाला गया. माता-पिता ज्यादा पढ़े लिखे नहीं थे. इसलिए परिजन चाहते थे की बच्चे पढ़ लिखकर कुछ बनें. हालांकि शेखर कुमार की अंग्रेजी बहुत कमजोर होने की वजह से काफी मुसीबतों का सामना भी करना पड़ा.

पिता का था की बेटा प्रशासनिक सेवा में जाए

शेखर कुमार के पिता हमेशा चाहते थे उनका बेटा प्रशासनिक सेवा में जाए. शेखर के पिता हमेशा करते थे की देश सिर्फ तीन तरह के लोगों को जानता है प्रधानमंत्री, मुख्यमंत्री और जिला मजिस्ट्रेट को. ऐसे में शेखर के पिता चाहते थे की शेखर जिला कलेक्टर बने. और हमेशा वो अपने बेटे को प्रशासनिक सेवा में जाने के लिए प्रेरित करते रहे.

जीवन के हर मोड़ पर कड़ी मिली चुनौती

शेखर जब तैयारी कर रहे थे तो उस समय उनके माता-पिता का एक्सीडेंट हो गया. माता के शरीद का निचला हिस्सा जहां लकवाग्रहस्त हो गया तो पिता कोमा में चले गए. उस समय शेखर अपनी पढ़ाई छोड़कर माता-पिता की सेवा में जुट गए. लेकिन समस्या अभी थमने वाली नहीं थी. पिता के डिप्रेशन में जाने की वजह से शेखर की परेशानियों और बढ़ती नजर आ रही थी. लेकिन उस समय शेखर की मांग ने उनको हिम्मत बंधाई

मुख्य परीक्षा के छूटा पेपर

शेखर इन समस्याओं से उभर ही रहे थे की आगे समस्याएं उनका रास्तों पर इंताजर करे खड़ी थी. शेखर ने जब दूसरे प्रयास में आईएएस की प्री परीक्षा पास कर मुख्य परीक्षा के लिए क्वालिफाइल किया तो परीक्षा में महज 10 मिनट की देरी उन पर भारी पड़ गई. हर वक्त समय पर हर जगह पहुंचने वाले शेखर मुख्य परीक्षा देने ही 10 मिनट देरी से पहुंचे जिसके चलते वो परीक्षा से बाहर हो गए.

साल 2010 में अपने सपने को पूरा किया

जीवन में समस्याओं के हर कदम पर सामने करने वाले शेखर ने आखिरकार 2010 में अपने पिता के सपने को पूरा कर यूपीएससी सिविल सर्वेस की परीक्षा पास की.