science को चुनौती देने वाला छात्र अब सुप्रीम कोर्ट जा पंहुचा है, जी हां बड़े दिग्गज वैज्ञानिको की थेओरीज़ को चुनौती दे डाली है, आइये आपको पुरे मामले से रूबरू करवाते है, चार्ल्स डार्विन के विकासवाद (Evolution) के सिद्धांत और आइंस्टीन के विशेष सापेक्षता (Special Relativity) के सिद्धांत को चुनौती देने वाली एक जनहित याचिका खारिज कर दी.
science:डार्विन के गलत सिद्धांत को स्वीकार करने की वजह से दो करोड़ लोगों की मौत हो चुकी है
जो द्रव्यमान और ऊर्जा की समानता को व्यक्त करता है. याचिका में कहा गया है कि डार्विन के गलत सिद्धांत को स्वीकार करने की वजह से दो करोड़ लोगों की मौत हो चुकी है. सुप्रीम कोर्ट ने याचिका सुनने से साफ इनकार कर दिया है दरअसल, याचिका में डार्विन के प्राकृतिक चयन और जैविक विकास के सिद्धांत के साथ ही अल्बर्ट आइंस्टीन के किसी पदार्थ के द्रव्यमान और ऊर्जा की सापेक्षता के सिद्धांत के सूत्र E=M C2 को चुनौती देते हुए इन्हें गलत बताया है science
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science:थ्योरी आफ इवोल्यूशन यानी विकासवाद का सिद्धांत कहा जाता है
क्या है डार्विन और अल्बर्ट आइंस्टीन का वो सिद्धांत? तो आपको बता दे की डार्विन का मानना था कि हम सभी के पूर्वज एक ही हैं. हर प्रजाति चाहे वह इंसान हो, पेड़-पौधे हों या जानवर, सभी एक-दूसरे से संबंधित हैं. इसी को थ्योरी आफ इवोल्यूशन यानी विकासवाद का सिद्धांत कहा जाता है. वहीं अल्बर्ट आइंस्टीन की थ्योरी ऑफ स्पेशल रिलेटिविटी दो Postulates)पर आधारित है.
source or observer की गति का उस पर कोई प्रभाव नही पड़ता.
पहली- एक-दूसरे से relative straight an2222d uniform motion से चलने वाली सभी laboratories में the motion of bodies follows the same laws of physics. इसे गति की relativity भी कहते हैं. दूसरी- प्रकाश का वेग हमेशा स्थिर रहता है और source or observer की गति का उस पर कोई प्रभाव नही पड़ता. science
science:डार्विन के गलत सिद्धांत को स्वीकार करने की वजह से दो करोड़ लोगों की मौत हो चुकी है
वही अब यह भी जान लेते है की याचिका में गलत क्यों बताया गया है, ऋषिकेश निवासी राजकुमार ने अपनी याचिका में गुहार लगाई है कि इन सिद्धांतों में सुधार के लिए सुप्रीम कोर्ट दखल दे. क्योंकि डार्विन के गलत सिद्धांत को स्वीकार करने की वजह से दो करोड़ लोगों की मौत हो चुकी है. क्योंकि डार्विन का विकासवाद सिद्धांत कहता है कि सभी जीवित प्राणी प्राकृतिक चयन के माध्यम से विकसित हुए हैं और अल्बर्ट आइंस्टीन का सिद्धांत कहता है की द्रव्यमान और ऊर्जा विनिमेय यानी अदला बदली होने योग्य हैं.
science:सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि हम यहां न्यूटन या आइंस्टीन को गलत साबित करने के लिए नहीं बैठे हैं.
ये दोनों सिद्धांत परस्पर विरोधी हैं लिहाजा गलत हैं. सुप्रीम कोर्ट में जस्टिस संजय किशन कौल और जस्टिस सुधांशु धूलिया की पीठ ने इस याचिका पर नाराजगी जताते हुए सुनवाई से इनकार कर दिया. सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि हम यहां न्यूटन या आइंस्टीन को गलत साबित करने के लिए नहीं बैठे हैं. बेहतर होगा कि याचिकाकर्ता अपना सिद्धांत खुद प्रतिपादित करें.
science: पीठ ने कहा कि याचिका कर्ता इस सिद्धांतों को गलत बताते हुए एक मंच चाहता है
आपने भी ये सिद्धांत पढ़ा है. आपकी दलील है सुप्रीम कोर्ट कुछ नहीं कर सकता. सुनवाई के दौरान पीठ ने कहा कि याचिका कर्ता इस सिद्धांतों को गलत बताते हुए एक मंच चाहता है. इसलिए यहां आया है. पीठ ने संविधान के अनुच्छेद 32 के तहत इस मामले पर सीधे विचार करने से इनकार कर दिया. पीठ ने कहा कि अगर याचिकाकर्ता का यह विश्वास है कि ये सिद्धांत गलत हैं तो वो अपने विश्वास और विचार का प्रचार करे.
science: अनुच्छेद 32 के तहत कोई भी फरियादी तभी सुप्रीम कोर्ट में सीधी अर्जी दाखिल कर सकता है
लेकिन शीर्ष न्यायालय इस पर विचार नहीं करेगा. क्योंकि अनुच्छेद 32 के तहत कोई भी फरियादी तभी सुप्रीम कोर्ट में सीधी अर्जी दाखिल कर सकता है और अदालत इस पर सुनवाई कर सकती है जब किसी के बुनियादी अधिकारों का हनन हो ये मुद्दा मौलिक अधिकारों से जुड़ा हो. इस पर याचिकाकर्ता राजकुमार ने कहा कि फिर उसे क्या करना चाहिए? कहां जाना चाहिए? इस पर पीठ ने कहा कि ये कोर्ट सलाह देने के लिए नहीं है. आपका जहां मन करे वहां जाइये. जानिये क्या है पूरा मामला science