अमर गीतों की रचना करने वाले गीतकार गोपाल दास नीरज ने 93 वर्ष तक हम सभी के दिलों पर राज किया। उनके जाने के बाद भी अपने गीतों की बदौलत वे आज भी हम लोगों के दिलों में जिंदा हैं. उनके गीत और शब्द सीधे दिल पर दस्तक देते हैं। इसीलिए दिनकर ने उन्हें हिंदी की वीणा कहा।
आज ही के दिन यानी 4 जनवरी 1925 को जन्मे नीरज का कहना था कि बिना प्यार के, बिना गीतों के यह जीवन सिसकते आंसुओं का कारवां भर है।
गीत जब मर जाएंगे फिर क्या यहां रह जाएगा
एक सिसकता आंसुओं का कारवां रह जाएगा
प्यार की धरती अगर बंदूक से बांटी गई
एक मुरदा शहर अपने दरमियां रह जाएगा
सामान्य सी बात है कि भोगा हुआ लिखा जाता है लेकिन उसे शब्दों में ढालने की अदभुत कला जो नीरज के यहां रही है उसने उन्हें गीतों का राजकुमार बना दिया।
खुशबू सी आ रही है इधर ज़ाफ़रान की
खिडकी खुली है ग़ालिबन उनके मकान की.
हारे हुए परिन्दे ज़रा उड़ के देख तो,
आ जायेगी ज़मीन पे छत आसमान की.
बुझ जाये सरे आम ही जैसे कोई चिराग,
कुछ यूँ है शुरुआत मेरी दास्तान की.
ज्यों लूट ले कहार ही दुल्हन की पालकी,
हालत यही है आजकल हिन्दुस्तान की.
ज़ुल्फों के पेंचो – ख़म में उसे मत तलाशिये,
ये शायरी ज़ुबां है किसी बेज़ुबान की.
नीरज से बढ़कर और धनी है कौन,
उसके हृदय में पीर है सारे जहान की.
19 जुलाई 2018 को हम सभी से जुदा हो जाने वाले गीत ऋषि को राजस्थान चौक का सलाम।