33 वर्षीय रुमा देवी की कहानी आज ना सिर्फ राजस्थान साथ ही पूरे भारत की महिलाओं के लिए एक प्रेरणा स्त्रोत है. बाड़मेर की रहने वाली रुमा देवी ने आज ना सिर्फ राजस्थान में एक समाजसेविका व भारतीय पारम्परिक हस्तकला कारीगर बन चुकी है. रुमा देवी द्वारा किए गए कार्यों को लेकर भारत में महिलाओं के लिए सर्वोच्च नागरिक सम्मान नारी शक्ति पुरस्कार 2018 से भी सम्मानित किया जा चुका है. शिखर पर पहुंचने के सफर में आज हम बात करने जा रहे राजस्थान की सबसे चर्चित और सफल महिलाओं में शुमार रुमा देवी की
रुमा देवी का जीवन परिचय
साल 1988 को बाड़मेर जिले के 30 किलोमीटर दूर रावतसर गांव की ढाणी में एक बहुत ही निर्धन किसान के परिवार में बेटी का जन्म हुआ. इस बेटी का नाम दिया गया रुमा देवी. रुमा देवी जब 4 साल की थी तब उसके सिर से मां का साया उठ गया. महज साल की रुमा देवी को यह पता तक नहीं था की उसकी मां गर्भवति थी और चिकित्सकीय संस्थानों की कमी के चलते बेटे के जन्म देते समय रुमा देवी की माता का निधन हो गया. ईश्वर इतनी क्रूर था की जन्म के साथ ही रुमा दवी के छोटे भाई का भी निधन हो गया. रुमा देवी के पिता ने दूसरी शादी करने के बाद रुमा देवी को अपने भाई के पास भेज दिया. स्कूल काफी दूर होने के साथ ही आर्थिक मजबूरियों के चलते रुमा देवी को 8वीं कक्षा के बाद पढ़ाई छोड़नी पड़ी. इसके बाद छोटी सी उम्र में रुमा देवी ने घर की जिम्मेदारियों को संभाला,
कशीदाकारी में दादी बनी गुरु
काम के बाद जब कुछ समय मिलता तो रुमा देवी अपनी दादी के पास कशीदाकारी का काम सिखती थी. और रुमा देवी ने बहुत कम समय में इस काम में महारथ हासिल कर ली.
17 साल की उम्र में हुई शादी, 19 साल की उम्र में खो दी संतान
रुमा देवी की शादी 17 साल की उम्र में हुई. लेकिन जिस घर में शादी करके रुमा देवी गई. वहां भी आर्थिक स्थिति ठीक नहीं थी. शादी के दो साल बाद रुमा देवी के एक संतान हुई. लेकिन जन्म के साथ ही बच्चे को सांस लेने में परेशानी हुई. पैसों के अभाव में बच्चे का समय पर इलाज नहीं हो पाया जिसके चलते महज 48 घंटे में ही बच्चे ने दम तोड़ दिया.
बच्चे की मौत के बाद टूट चुकी थी रुमा देवी
बच्चे की मौत ने जैसे रूमा देवी को तोड़ ही दिया था. रुमा देवी अधिकतर समय घर में ही बिताने लगी. लेकिन एक दिन सोचा की क्यूं ना घर में ही ऐसा काम शुरू किया जाए जिससे मन भी लगा रहे और दो पैसों की आमदनी भी हो जाए. रुमा देवी को बचपन में दादी ने जो काम सिखाया था वो काम अब रुमा देवी के जीवन का हिस्सा बना.
2008 में 10 महिलाओं से शुरू हुआ कारवा दो साल में पहुंचा 5 हजार तक
रुमा देवी ने जब काम शुरू किया तो शुरूआत में सिलाई मशीन नहीं होने से काफी परेशानी का सामना करना पड़ता था. जिसके बाद रुमा देवी ने अन्य महिलाओं से बात करके उनको एकत्रित किया. बाद में महिलाओं ने 100-100 एकत्रित कर सिलाई मशीन खरीदी. 2008 में रुमा देवी के पास 10 महिलाओं का समूह था. लेकिन बहुत कम समय में ही रुमा देवी का काम बढ़ता गया और महिलाएं जुड़ती गई. जो कारवां 2008 में 10 महिलाओं से शुरू हुआ वो दो साल में ही 5 हजार तक पहुंच गया.
कामयाबी के बाद रुमा देवी पर लगी पुरस्कारों की झड़ी
मेहनत और अपने संघर्ष के दम पर रुमा देवी अब महिलाओं के लिए मिसाल बन चुकी थी. सफलता प्राप्त करने के बाद तो मानो हर कोई रुमा देवी को सम्मानित करने की दौड़ में सबसे आगे खड़ा रहना चाहता था. रुमा देवी ने अमिताभ बच्चन के शो कौन बनेगा करोड़पति में भी हिस्सा लिया. इसके साथ ही मेंरिडियन कांफ्रेंस में जीटो इंटरनेशनल की तरफ से आयोजित अंतर्राष्ट्रीय सम्मेलन में विशेष अतिथि के रूप में रुमा देवी को सम्मानित भी किया गया. प्रवासी राजस्थानी और मारवाड़ी युवा मंच की ओर से रूमा देवी को द महाराणा अवार्ड से भी सम्मानित किया जा चुका है. रेतीले धोरों के बीच जन्मी और कच्ची झोपड़ियों में रही रूमा देवी आज कई देशों की यात्रा भी कर चुकी है. यहां तक की हावर्ड यूनिवर्सिटी ने रूमा देवी के बच्चे को पढ़ाने का आमंत्रण भी दे चुकी है.
रूमा देवी को मिला सर्वोच्च नारी शक्ति अवार्ड
2019 में अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस के मौके पर भारत के राष्ट्रपति के हाथों रूमा देवी को नारी शक्ति पुरस्कार 2018 से सम्मानित किया गया. हस्तशिल्प क्षेत्र में नवाचार के लिए उल्लेखनीय कार्य के लिए रूमा देवी को नामित किया गया था.
राजीविका की ब्रांड एंबेसेडर भी बनी रूमा देवी
राजस्थान ग्रामीण आजीविका विकास परिषद ने दिसम्बर 2021 में अपने एक संवाद कार्यक्रम के दौरान अंतर्राष्ट्रीय फैशन डिजाइनर डॉ. रूमा देवी को राजीविका का स्टेट ब्रांड एंबेसेडर भी बनाया है. महिलाओं के उत्थान एवं स्वयं सहायता समूहों के जरिए महिला शक्तिकरण को बढ़ावा दे रही रूमा देवी को प्रशक्ति पत्र देकर भी सम्मानित किया गया.