शरद पुरोहित,जयपुर। राजस्थान के उपचुनाव में कांग्रेस का ग्राफ़ इस बार सोशल मीडिया पर कमजोर दिखाई दे रहा है। जिन क्षेत्रों में पहले कांग्रेस का दबदबा था, वहां अब बीजेपी से लेकर छोटे दलों तक ने अपनी पकड़ बना ली है। कांग्रेस के कुछ प्रत्याशी तो मुख्य मुकाबले में बने रहने की कोशिश कर रहे हैं, जबकि बीजेपी जोश के साथ मैदान में उतरी है।
कांग्रेस का फीका सोशल मीडिया खेल
सोशल मीडिया पर कांग्रेस की कमजोर पकड़ इस बार चर्चा का विषय बनी हुई है। जहाँ बीजेपी के हर उम्मीदवार की तस्वीरें और रैली अपडेट्स सोशल मीडिया पर धड़ल्ले से चल रहे हैं, वहीं कांग्रेस के पेज पर अपेक्षाकृत शांति नजर आ रही है। सोशल मीडिया का चुनावी परिणाम पर सीधा असर भले ही न हो, लेकिन माहौल बनाने में इसकी भूमिका महत्वपूर्ण है। कांग्रेस के इस मोर्चे पर कमजोर होने से क्या उनकी संभावनाएं और कमज़ोर हो सकती हैं?
सलूंबर और चौरासी सीट: कांग्रेस की बड़ी चुनौतियाँ
सलूंबर सीट पर कांग्रेस प्रत्याशी रेशमा मीणा को शीर्ष तीन में जगह बनाए रखने के लिए भी कड़ी मेहनत करनी पड़ रही है। आदिवासी बहुल इलाकों में कांग्रेस ने विकास कार्य किए हैं, लेकिन वोटों पर उसका असर नहीं दिख रहा। इसी तरह, 84 सीट पर जहां 75% वोट आदिवासी समुदाय के हैं, वहाँ बीजेपी के अनिल कटारा मजबूत स्थिति में हैं। कांग्रेस का आधार यहां अब केवल ओबीसी और मुस्लिम मतदाताओं तक सिमटता नजर आ रहा है।
खींवसर में बेनीवाल की रणनीति और कांग्रेस की उम्मीदें
खींवसर सीट पर जाट नेता हनुमान बेनीवाल की पकड़ अब उतनी मजबूत नहीं रही है, और जाट वोटों का विभाजन कांग्रेस के लिए एक मौका बन सकता था। लेकिन स्थानीय नेताओं के आपसी विवाद से कांग्रेस की स्थिति और बिगड़ गई है। कांग्रेस उम्मीदवार दुर्ग सिंह चौहान के बीजेपी में जाने से कांग्रेस की ताकत कमजोर पड़ रही है।
कांग्रेस की ढीली रणनीति और बीजेपी का आक्रामक प्रचार
इस चुनाव में कांग्रेस के बड़े नेता जैसे अशोक गहलोत, सचिन पायलट और गोविंद सिंह डोटासरा ज़्यादा सक्रिय नहीं दिख रहे। वहीं बीजेपी ने हर सीट पर अपने उम्मीदवारों की जीत के लिए पूरा ज़ोर लगा रखा है। कांग्रेस के संगठन में उत्साह की कमी दिख रही है और उनके कार्यकर्ता बिखरे हुए से नजर आ रहे हैं। क्या यह ढीलापन कांग्रेस के हार का कारण बनेगा?
क्या कांग्रेस वापसी कर सकती है?
राजस्थान का उपचुनाव कांग्रेस के लिए एक बड़ा इम्तिहान है। वापसी के लिए कांग्रेस को सोशल मीडिया से लेकर स्थानीय नेतृत्व तक में नई ऊर्जा लानी होगी। बीजेपी ने अपनी तरफ से पूरी ताकत झोंक रखी है, और कांग्रेस को हर कदम सोच-समझकर उठाना होगा। छोटे-छोटे सुधार भी कांग्रेस को जीत के करीब ला सकते हैं, लेकिन इसके लिए उन्हें तुरंत रणनीति में बदलाव लाना होगा।