शरद पुरोहित,जयपुर। राजस्थान विधानसभा का बजट सत्र इस बार भी मंत्री किरोड़ी लाल मीणा की गैरमौजूदगी में चलेगा। उन्होंने स्वास्थ्य कारणों का हवाला देकर छुट्टी ले ली है। जैसे ही यह खबर आई, विपक्ष ने इस पर सवाल उठाने शुरू कर दिए।
विपक्ष के सवाल और सरकार का जवाब
विपक्ष ने किरोड़ी लाल मीणा की गैरमौजूदगी पर सरकार को घेरने की कोशिश की। लेकिन संसदीय कार्यमंत्री जोगाराम पटेल ने स्पष्ट किया कि स्वास्थ्य से बढ़कर कुछ नहीं होता। अगर कोई मंत्री बीमार है तो उसे अवकाश लेने का हक है।
वैराग्य बयान से सियासत गर्म
कुछ दिन पहले किरोड़ी लाल मीणा का एक बयान वायरल हुआ था, जिसमें उन्होंने कहा था—
“हे पपलाज माता, मेरे गले की घंटारी इनके गले में लटका दो। मैं तो रहना ही नहीं चाहता। मुझे भी वैराग्य हो जाए तो रामबिलास को और रास्ता मिल जाएगा।”
इस बयान को लेकर राजनीतिक हलकों में चर्चाएं तेज हो गई थीं।
क्या यह हताशा है या सियासी दांव?
राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि इस बयान के पीछे कहीं न कहीं हताशा झलक रही है। लेकिन किरोड़ी लाल मीणा के राजनीतिक इतिहास को देखते हुए यह भी कहा जा सकता है कि वह सुर्खियों में बने रहना बखूबी जानते हैं।
किरोड़ी लाल मीणा का कद और उनकी सियासत
वर्ष 2008 में वसुंधरा राजे से मतभेद के बाद किरोड़ी लाल मीणा ने अपनी अलग राह बनाई थी। चाहे कांग्रेस की सरकार रही हो या भाजपा की, वे हमेशा अपनी आवाज बुलंद रखते आए हैं। प्रदर्शन और आंदोलन के जरिए उन्होंने अपनी सियासी पकड़ मजबूत बनाई।
लोकसभा चुनाव में नहीं चला किरोड़ी का जादू
हालांकि, लोकसभा चुनाव में किरोड़ी लाल मीणा अपनी पकड़ नहीं बना सके। लेकिन भाजपा में उनका कद आज भी मजबूत है, क्योंकि वे एक बड़े वोट बैंक को प्रभावित करते हैं। दिल्ली तक उनकी पहुंच बताई जाती है, और वे जमीन से जुड़े नेता माने जाते हैं।