भारत में एक शादी शुदा जोड़े में पति को ऊपर माना जाता है यह तो सबको पता ही है। ज़्यादातर शादीशुदा जीवन में बलिदान एक औरत को ही करने पड़ते है। चाहे फिर वह पति के लिए निर्जला व्रत करना हो या फिर शादी होने के बाद भी एक विधवा की तरह जीना। हमारे देश में एक ब्याही औरत की पहचान उसके श्रृंगार से होती है।
शादीशुदा होने के बाद भी एक विधवा का जीवन जीना पड़ता है
जैसा आप सभी को पता है हमारे देश में शादीशुदा औरत श्रृंगार करती है, लेकिन एक ऐसी जगह है जहाँ औरत को शादीशुदा होने के बाद भी एक विधवा का जीवन जीना पड़ता है ताकि उसके पति की उम्र लम्बी हो। जी हाँ , गछवाहा समुदाय की महिलाएं अपने पति की लंबी उम्र के लिए हर साल विधवा जैसी ज़िंदगी जीती हैं। साल में 5 महीने के लिए ये महिलाएं विधवाओं की तरह रहती हैं। गछवाहा समुदाय की स्त्रियां इस अनोखी परंपरा का पालन प्राचीन समय से ही करती चली आ रही हैं।
औरतों के पति पेड़ों से ताड़ी उतारने जाते हैं
ये महिलाएं 5 महीने तक न तो कोई श्रृंगार करती हैं, न ही खुश रहती हैं। इस प्रथा को मान ने का कारण यह है की इस समय औरतों के पति पेड़ों से ताड़ी उतारने जाते हैं और इसी वजह से तब तक महिलाओं को सादगीपूर्ण जीवन व्यतीत करना होता है। इस समुदाय के लोगों की कुलदेवी तरकुलहा देवी मानी जाती हैं। पूर्वी उत्तर प्रदेश में रहने वाले इस समुदाय के लोगों की आजीविका का मुख्य काम पेड़ से ताड़ी उतारना माना जाता है।
श्रृंगार अर्पित करके पति की जीवन की रक्षा की प्रार्थना करती हैं
ताड़ के पेड़ काफी ज्यादा लंबे और सीधे होते हैं, ऐसे में यहां ताड़ी उतारना खतरनाक माना जाता है। इसीलिए उनकी पत्नियां कुलदेवी के चरणों में अपना श्रृंगार अर्पित करके पति की जीवन की रक्षा की प्रार्थना करती हैं। ऐसी मान्यता है कि इस तरह से कुलदेवी प्रसन्न होती हैं और महिलाओं के पति ती जिंदगी की रक्षा करती हैं और आशीर्वाद देती है। ताड़ी उतारने का काम खत्म होने के बाद गछवाह समुदाय की महिलाएं तरकुलहां देवी मंदिर में नाग पंचमी के दिन इकट्ठा होकर पूजा अर्चना करने के साथ सामूहिक गौठ का आयोजन करती हैं।
5 महीने एक विधवा का जीवन बिताना पड़ता है
ऐसे अन्धविश्वास की वजह से औरतों को 5 महीने एक विधवा का जीवन बिताना पड़ता है। उनके लिए यह कितना मुश्किल होगा यह तोह कोई जानता है ही नहीं। हालाँकि अभी जैसे जैसे एजुकेशन बढ़ रही है वैसे वैसे चीज़ो में बदलाव आ रहा है लेकिन गाँव में आज भी इन प्रथाओं को माना जाता है।