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5 असफलता भी नहीं तोड़ पाई हिम्मत, ज्योति चौरसिया ने पिता का सपना किया पूरा

कहते हैं अगर सफलता प्राप्त करनी तो मुश्किलों से हार मानकर रुकना नहीं है. लेकिन जो विपरीत परिस्थितियों से सामना करते हुए लक्ष्य का प्राप्त करे दुनिया में वो लोग ही पहचान बनाते हैं, शिखर पर पहुंचने की इस कड़ी में कुछ ऐसे ही लोगों की कहानी हम आपसे रूबरू करवाते हैं जिन्होंने तमाम संघर्षों के बाद ना सिर्फ अपने लक्ष्य को हासिल किया साथ ही अन्य लोगों के लिए मिसाल भी बने. आज की इस कड़ी में आज हम बात करने जा रहे हैं ज्योति चौरसिया की.  उत्तर प्रदेश की रहने वाली ज्योति चौरसिया ने यूपीपीएससी (UPPSC) में 21वीं रैंक हासिल करते हुए ना सिर्फ अपने लक्ष्य को प्राप्त किया साथ ही अपने पिता के सपने को भी पूरा किया. 

पिता चलाते थे पान की दुकान

एक पान की दुकान चलाने वाली इंसान की बेटी अगर एसडीएम (SDM) बन जाए तो इस बेटी की कहानी हर कोई जानना चाहेगा. ज्योति चौरसिया भी आज उन लोगों में से है जिनकी कहानी देश का हर युवा ना सिर्फ जानना चाहता है साथ ही ज्योति के नक्शे कदम पर चलना भी चाहता है. 

खराब आर्थिक हालात के बाद भी पाई सफलता

ज्योति चौरसिया के पिता हेमचंद चौरसिया पानी की दुकान चलाते थे. परिवार का आर्थिक हालात भी ठीक नहीं थी. लेकिन इसके बाद भी परिवार हमेशा ज्योति को सपोर्ट करता रहा. बहन की पढ़ाई के लिए बड़ा भाई अपनी पढ़ाई छोड़कर पिता से साथ पानी की दुकान संभालने लगा.

ज्योति का जीवन परिचय

ज्योति चौरसिया मूल रूप से उत्तर प्रदेश के देवरिया जिले की हैं. उनका परिवार गोंडा में शिफ्ट हो गया था. यहीं ज्योति की स्कूली पढ़ाई पूरी हुई. श्री रघुकुल महिला विद्यापीठ से साइंस में ग्रेजुएशन के बाद ज्योति PCS की तैयारी करने लखनऊ चली गई. लेकिन ये सफर आसान नहीं रहा. घर की आर्थिक हालात ऐसी थी कि बड़े भाई को पढ़ाई छोड़कर दुकान पर बैठना पड़ा.

घरवालों ने हमेशा किया मोटिवेट- ज्योति चौरसिया

ज्योति चौरसिया बताती हैं की परीक्षा की तैयारी 2015 से लगी हुई थी. लेकिन एक बार भी प्री क्वालीफाई नहीं कर पाई. तब भी मेरे घरवाले मुझे मोटिवेट करते रहे. उन्होंने मुझे हार नहीं मानने दी. बीच में कुछ हेल्थ प्रॉब्लम भी हुईं. 5 बार असफलता मिली. लेकिन छठे प्रयास में यह सफलता काफी सुखद है. मेरे ग्रेजुएशन के टाइम पर गोंडा में डीएम रोशन जैकब मैडम की पोस्टिंग थी. तब मैं उनसे बहुत प्रेरित हुई थी. उन्हें देखकर मैंने ठान लिया था कि मुझे भी यही काम करना है. विवेकानंद ने कहा है- उठो जागो और तब तक मत रुको जब तक अपने लक्ष्य को ना प्राप्त कर सको.

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