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सुप्रीम कोर्ट का बड़ा फैसला, अगर सांसदों और विधायकों ने वोट के लिए रिश्वत ली तो चलेगा मुकदमा; जानिए क्या है पूरा माजरा?

CJI डी वाई चंद्रचूड़ ने कहा कि MP/MLA रिश्वत लेकर संसदीय विशेषाधिकार का दावा नहीं कर सकते, उन्हें मुकदमा झेलना होगा।

चौक टीम, जयपुर। सुप्रीम कोर्ट की 7 जजों की संविधान पीठ ने सोमवार को सदन में वोट के बदले नोट मामले में एक अहम फैसला सुनाया है। इस मामले में CJI डी वाई चंद्रचूड़ ने कहा कि MP/MLA रिश्वत लेकर संसदीय विशेषाधिकार का दावा नहीं कर सकते, उन्हें मुकदमा झेलना होगा। सुप्रीम कोर्ट का कहना है कि वोट के बदले नोट लेने वाले सांसदों/विधायकों को किसी भी प्रकार का कानूनी संरक्षण नहीं है।

सात जजों ने सहमति से यह फैसला सुनाया

बता दें CJI डी वाई चंद्रचूड़, जस्टिस एएस बोपन्ना, जस्टिस एमएम सुंदरेश, जस्टिस पीएस नरसिम्हा, जेबी पारदीवाला, जस्टिस संजय कुमार और जस्टिस मनोज मिश्रा की बेंच ने फैसला सुनाया। सात जजों ने सहमति से यह फैसला सुनाया है। सुप्रीम कोर्ट ने 1998 के पीवी नरसिम्हा राव मामले के फैसले को खारिज कर दिया है और कहा है कि सांसदों और विधायकों को रिश्वत के बदले विधायिका में वोट देने पर कानूनी कार्रवाई से छूट नहीं है। बेंच ने कहा है कि ये सर्वसम्मति का फैसला है और सुप्रीम कोर्ट छूट से असहमत है।

1998 के फैसले में ये कहा गया था

मालूम हो कि 1998 के फैसले में कहा गया था कि अगर सांसद और विधायक रिश्वत लेकर सदन में वोट देते हैं तो उन्हें मुकदमे से छूट होगी। उस फैसले में सुप्रीम कोर्ट की 5 जजों की संविधान पीठ ने 3:2 के बहुमत से तय किया था कि इसके लिए जनप्रतिनिधियों पर मुकदमा नहीं चलाया जा सकता।

सुप्रीम कोर्ट ने अपने फैसले में क्या कहा?

आज सुप्रीम कोर्ट ने कहा, “अनुच्छेद 105(2) या 194 के तहत रिश्वतखोरी को छूट नहीं दी गई है, क्योंकि रिश्वतखोरी में लिप्त सदस्य एक आपराधिक कृत्य में शामिल होता है, जो वोट देने या विधायिका में भाषण देने के कार्य के लिए आवश्यक नहीं है। अपराध उस समय पूरा हो जाता है, जब सांसद या विधायक रिश्वत लेता है। ऐसे संरक्षण के व्यापक प्रभाव होते हैं। राजव्यवस्था की नैतिकता पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है। हमारा मानना ​​है कि रिश्वतखोरी संसदीय विशेषाधिकारों द्वारा संरक्षित नहीं है। इसमें गंभीर ख़तरा है, ऐसा संरक्षण ख़त्म होने चाहिए।”

सुप्रीम कोर्ट के फैसले की 5 बड़ी बातें-

  1. सबसे पहले कोर्ट के सामने सवाल था कि रिश्वत के बदले सदन में भाषण या वोट देने के मामलों में क्या जनप्रतिनिधि कानूनी मुकदमे से छूट का दावा कर सकते हैं या नहीं? 1998 के अपने ही फैसले पर सुप्रीम कोर्ट को दोबारा से विचार करना था। कोर्ट ने 1998 के फैसले को फिर से विचारने के बाद ये स्पष्ट कर दिया कि रिश्वत मामलों में MP-MLA अब मुकदमे से नहीं बच सकते।
  2. सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि विधायिका के किसी सदस्य की ओर से भ्रष्टाचार या रिश्वतखोरी सार्वजनिक जीवन में ईमानदारी को खत्म कर देती है। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि ‘रिश्वत लेना एक अपराध है और इसका सदन के अंदर किसी सांसद या विधायक द्वारा क्या कहा और किया जाता है से कोई संबंध नहीं है और इसलिए सदन के अंदर मुद्दों पर निडर विचार-विमर्श और बहस के लिए उन्हें संविधान द्वारा दी गई छूट उन्हें अभियोजन से नहीं बचा सकती।’
  3. इस मामले में याचिकाकर्ता और वकील अश्विनी उपाध्याय ने कहा है कि सांसदों और विधायकों के खिलाफ जो मौजूदा मामले चल रहे हैं, उनको एमपी/एमएलए कोर्ट में स्थानांतरित किया जाएगा और एक साल में ऐसे मामले में फैसला आएगा।
  4. इस तरह सांसद या विधायक सदन में मतदान के लिए रिश्वत लेकर मुकदमे की कार्रवाई से नहीं बच सकते हैं। सुप्रीम कोर्ट ने 1998 के नरसिम्हा राव जजमेंट के अपने फ़ैसले को पलट दिया है। 1998 में 5 जजों की संविधान पीठ ने 3:2 के बहुमत से तय किया था कि रिश्वतखोरी के ऐसे मामलों में जनप्रतिनिधियों पर मुक़दमा नहीं चलाया जा सकता।
  5. कोर्ट ने माना कि नरसिम्हा जजमेंट संविधान के अनुच्छेद 105(2) और 194(2) की ग़लत व्याख्या करता है। दरअसल इन संवैधानिक प्रावधानों के मुताबिक किसी सांसद या विधायक पर सदन के अंदर वोट या स्पीच आपराधिक या सिविल मुकदमा नहीं चलाया जा सकता।
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