देश के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी 4 फरवरी को एक बार फिर राजस्थान का दौरा करेंगे जहां वह दूसरी बार दौसा जिले के दौरे पर आएंगे. मिली जानकारी के मुताबिक पीएम देश के बहुप्रतीक्षित दिल्ली-मुम्बई ग्रीनफील्ड एक्सप्रेस-वे का पहला चरण जो सोहना से दौसा जिले के बड़ का पाड़ा तक 228 किलोमीटर तक बन गया है उसे जनता को समर्पित करेंगे. वहीं नांगल राजावतान स्थित मीणा हाईकोर्ट में पीएम का उद्घाटन कार्यक्रम रखा गया है जिसको लेकर अब NHAI ने तैयारियां भी शुरू कर दी हैं. इधर राजस्थान में चुनावी साल में पीएम मोदी के लगातार सूबे में दौरे को लेकर सियासी गलियारों में भी चर्चा तेज है. जहां हाल में पीएम मोदी ने गुर्जरों के पूजनीय स्थान भगवान देवनारायण मंदिर में एक जनसभा को संबोधित किया जिसे बीजेपी की गुर्जर समुदाय को साधने की कोशिश के तौर पर देखा गया. वहीं अब मोदी के पूर्वी राजस्थान आने को लेकर माना जा रहा है कि बीजेपी मिशन 2023 के लिए मीणा वोटबैंक को भी साधना चाहती है.
बता दें कि पीएम मोदी बीते 5 साल में दूसरी बार दौसा आ रह हैं. इससे पहले वह 2018 में विधानसभा चुनाव में प्रचार के लिए दौसा आए थे जहां नांगल प्यारीवास मीणा हाईकोर्ट में ही प्रधानमंत्री की सभा हुई थी. वहीं प्रदेश में चुनावी साल के लिहाज से पीएम के इस दौरे को बीजेपी के राजस्थान अभियान के तौर पर देखा जा रहा है.
पूर्वी राजस्थान पर बीजेपी का फोकस
दरअसल बीजेपी ने राजस्थान में 2023 के चुनावी अभियान का आगाज करते हुए समाज शक्ति और पुरानी कमजोर कड़ियों को कसने पर जोर दिया है जहां गुर्जरों को साधने की कवायद के बाद पीएम मोदी अब मीणा बाहुल्य इलाके में आ रहे हैं. इसके अलावा 2018 में बीजेपी का एक भी गुर्जर विधायक नहीं बन पाया था वहीं पूर्वी राजस्थान के 7 जिलों में भी बीजेपी का प्रदर्शन काफी खराब रहा था.
ऐसे में मिशन-2023 को लेकर बीजेपी ने बीते दिनों भरतपुर, सवाई माधोपुर में एसटी विशिष्ट जन समारोह का आयोजन करवाया था. मालूम हो कि पूर्वी राजस्थान के 7 जिलों में फैली 39 विधानसभा सीटों में बीजेपी पिछले चुनाव में महज 4 सीटों पर सिमट गई थी. वहीं 2013 के चुनावों पार्टी को यहां 28 सीटों पर जीत हासिल हुई थी.
क्या कहता है सीटों का गणित
पूर्वी राजस्थान के अलवर, भरतपुर, धौलपुर, करौली, टोंक, सवाईमाधोपुर और दौसा जिलों में विधासनभा सीटें है जहां 2013 में बीजेपी ने सबसे ज्यादा 28 सीटें जीती थीं और कांग्रेस को 7, किरोड़ी लाल मीणा की एनपीपी को 3 और एक सीट बसपा को मिली थी. वहीं पिछले विधानसभा चुनाव में बीजेपी फिर 4 सीटों पर ही सिमटकर रह गई थी और कांग्रेस को 25, बहुजन समाज पार्टी को 5, निर्दलयों को 4 और एक सीट पर आरएलडी के सुभाष गर्ग ने जीत हासिल की थी.
उदाहरण के तौर पर जैसे सवाईमाधोपुर में 4 विधानसभा सीटें हैं जहां 2013 में बीजेपी ने सभी 4 सीटें जीती थी लेकिन 2018 में बीजेपी का खाता भी नहीं खुला था.
वहीं अगर 5 लोकसभा सीटों की बात करें तो 2014 से ठीक पहले विधानसभा में बीजेपी की सरकार बनी थी और 2019 से पहले हुए विधानसभा चुनावों में कांग्रेस सत्ता में लौट आई लेकिन दोनों ही लोकसभा चुनावों में प्रदेश की सभी 25 और पूर्वी राजस्थान की सभी 5 सीटों पर बीजेपी के सांसद चुनकर आए. राजस्थान में विधानसभा चुनाव का पैटर्न लोकसभा से हमेशा ही अलग देखा गया है.
पूर्वी राजस्थान में गहलोत की पकड़
इसके इतर बीजेपी के लिए पूर्वी राजस्थान के रास्ते सूबे की सत्ता में फिर से स्थापित होना इतना आसान भी नहीं है. सीएम अशोक गहलोत सरकार में इस इलाके से आधा दर्जन मंत्री आते हैं और वहीं कई नेताओं को यहां से निगमों और बोर्डों में जिम्मेदारी देकर गहलोत सरकार ने इस इलाके में अपनी पकड़ मजबूत की है.
वहीं धौलपुर से बीजेपी की अकेली शोभारानी चुनाव जीती थी जिसे राज्यसभा चुनाव के बाद पार्टी ने बाहर का रास्ता दिखा दिया है. बताया जा रहा है कि वह भी अब अंदरखाने कांग्रेस को समर्थन करती है. इसके अलावा गहलोत ने बसपा का विलय भी कांग्रेस में करा दिया और निर्दलियों और आरएलडी का समर्थन भी कांग्रेस को मिला हुआ है.
ERCP पर गहलोत हमलावर
वहीं ईस्टर्न राजस्थान कैनाल प्रोजेक्ट यानि पूर्वी राजस्थान नहर परियोजना इस बार चुनावों में बड़ा मुद्दा बन सकती है जहां इस मसले पर गहलोत लगातार केंद्र पर हमलावर हैं. 2017-18 के बजट में राजस्थान की तत्कालीन वसुंधरा राजे सरकार में इस परियोजना की घोषणा हुई थी जिस दौरान सरकार ने ऐलान किया था कि ईआरसीपी परियोजना झालावाड़, बारां, कोटा, बूंदी, सवाई माधोपुर जैसे 13 जिलों में सिंचाई और पीने की पानी की जरूरतों को पूरा करेगी.
राजे ने अपने आखिरी बजट भाषण में कहा था कि राज्य सरकार ने केंद्र सरकार को ईआरसीपी को राष्ट्रीय परियोजना घोषित करने के लिए प्रस्ताव भेजा है लेकिन मुख्यमंत्री गहलोत लगातार ईआरसीपी को राष्ट्रीय परियोजना का दर्जा देने की मांग कर रहे हैं. वहीं बीजेपी ने इस मसले पर तकनीकी कारणों का हवाला देकर मामले को लटका रखा है. ऐसे में पीएम की जनसभा में इस मुद्दे पर चुप्पी को कांग्रेस भुना सकती है.
एसटी वोट बैंक पर भी नजरें
गौरतलब है कि बीजेपी का पूर्वी राजस्थान का अभियान बीते साल अप्रैल में ही शुरू हो गया था जहां पार्टी ने सवाईमाधोपुर में एक एसटी मोर्चे के सम्मेलन का आयोजन किया था जिसमें बीजेपी के राष्ट्रीय अध्यक्ष जेपी नड्डा सवाई माधोपुर पहुंचे थे. नड्डा ने यहां बीजेपी के जनजाति के प्रबुद्धजनों के सम्मेलन को संबोधित किया. ऐसे में बीजेपी आलाकमान की ओर से नड्डा को सवाई माधोपुर भेजकर कांग्रेस के परंपरागक वोट बैंक मीणा समुदाय को साधने की कोशिशें पहले भी की गई हैं.