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जबरन धर्म परिवर्तन पर सुप्रीम कोर्ट गंभीर, कहां मसले को ना दें राजनीतिक रंग

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जबरन धर्म परिवर्तन के खिलाफ कानून बनाने की मांग तेज हो रही है। इससे जुड़ी याचिका पर सुनवाई करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने इस मुद्दे को बेहद गंभीर बताया। साथ ही कहा कि इस मसले को राजनीतिक रंग नहीं देना चाहिए। सुप्रीम कोर्ट याचिका पर अगली सुनवाई 7 फरवरी को करेगा।

अश्वनी कुमार उपाध्याय ने लगाई थी याचिका

सुप्रीम कोर्ट में अश्वनी कुमार उपाध्याय ने याचिका पर सुनवाई की अर्जी लगाई थी। इसमें फर्जी धर्मांतरण को नियंत्रित करने के लिए केंद्र और राज्य सरकार को कड़े कदम उठाने के निर्देश देने की मांग की गई है। याचिका में यह भी कहा गया कि जबरन धर्मांतरण राष्ट्र सुरक्षा के लिए खतरा पैदा कर सकता है और नागरिकों की धार्मिक स्वतंत्रता पर अतिक्रमण के तौर पर सामने आ सकता है।

देशव्यापी समस्या बना धर्मांतरण

अश्विनी कुमार उपाध्याय ने याचिका में दावा किया कि जबरन धर्मांतरण एक राष्ट्रव्यापी समस्या बन चुकी है जिसे तत्काल प्रभाव से दूर करने की जरूरत है। नागरिकों को होने वाली चोट बहुत बड़ी है, क्योंकि एक भी जिला ऐसा नहीं है जो धर्म परिवर्तन के असर से मुक्त हो।

गौरतलब है कि पिछली सुनवाई 12 दिसंबर को हुई थी जिसमें सुप्रीम कोर्ट ने याचिकाकर्ता अश्वनी उपाध्याय से कहा था कि वह जनहित याचिका में अल्पसंख्यक धर्मों के खिलाफ दिए गए अपमानजनक बयानों को हटाए। यह सुनिश्चित करें कि ऐसी टिप्पणी किसी रिकॉर्ड में ना आए। याचिकाकर्ता की ओर से पेश हुए अरविंद दातार ने कोर्ट के निर्देशों का पालन करने का आश्वासन दिया था। केंद्र सरकार के हलफनामे के इंतजार करने के लिए उस समय सुनवाई 9 जनवरी तक के लिए स्थगित कर दी गई थी।

अलग से बने कानून

याचिका में मांग की गई है कि धर्म परिवर्तन के ऐसे मामलों को रोकने के लिए अलग से कानून बने या फिर इस अपराध को भारतीय दंड संहिता में शामिल किया जाए। याचिका में कहा गया है कि यह मुद्दा किसी एक जगह से जुड़ा नहीं है, ऐसे में देश की समस्या को देखते हुए तुरंत ध्यान देने की आवश्यकता है।
केंद्र की तरफ से सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने कहा था कि धर्म परिवर्तन के ऐसे मामले आदिवासी इलाकों में प्रमुखता से देखे जाते हैं। सुप्रीम कोर्ट ने उनसे पूछा कि अगर ऐसा है तो सरकार क्या कर रही है? l कोर्ट ने केंद्र से कहा है कि इस मामले में क्या कदम उठाए जाने हैं उन्हें भी साफ करें। कोर्ट ने यह भी कहा कि संविधान के तहत धर्मांतरण कानूनी है, लेकिन जबरन धर्मांतरण कानूनी नहीं है इस को ध्यान में रखते हुए जवाब पेश किया जाए।

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