Race: आज हम आपको एक ऐसी महिला के बारे में बताएँगे जो लाखो लोगो की इंस्पिरेशन है जी हां देश और दुनिया के लाखों लोगों की तरह खुद को फिट रखने के लिए और अपना वजन कम करने के लिए 20 साल पहले बंगाल की रहने वाली महाश्वेता घोष ने दौड़ना शुरू किया था.
श्वेता को भी नहीं पता था कि एक दिन उनकी दौड़ उनको नई पहचान देगी.
श्वेता अपने बढ़ते वजन से परेशान थीं. कॉलेज में पढ़ाई के दौरान न सोने का पता था न खाने का जिसका नतीजा ये हुआ कि वजन बढ़ता ही चला गया. इससे परेशान होकर एक दिन श्वेता ने ठान लिया कि अब वजन कम करना है. उन्होंने race शुरू किया, लेकिन श्वेता को भी नहीं पता था कि एक दिन उनकी दौड़ उनको नई पहचान देगी.
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मैराथन ऑफ सैंड में भारत को रिप्रेजेंट किया
Race: श्वेता को कहा ही पता था की दौड़ना उसकी एक अलग पहचान बना देगा वो देश कि पहली ऐसी महिला बनेंगी जिन्होंने दुनिया के सबसे कठिन माने जाने वाले मैराथन ऑफ सैंड में भारत को रिप्रेजेंट किया और इस मैराथन को खत्म किया. एक बातचीत के बाद मैराथन ऑफ सैंड के बारे में जानकारी देते हुए श्वेता बताती है कि ये सहारा के रेगिस्तान में आयोजित होती है
2022 के लिए इसमें 1100 से ज्यादा लोगों ने हिस्सा लिया था
जिसमें दुनिया भर के लोग हिस्सा लेते है. साल 2022 के लिए इसमें 1100 से ज्यादा लोगों ने हिस्सा लिया था. ये कुल 7 दिनों तक चलती है और इसमें कुल 256 किलोमीटर चलना होता है. श्वेता आगे बताती है कि सबसे बड़ी चुनौती ये होती है कि आप एक अलग माहौल, मौसम और अलग ट्रैक पर दौड़ते हैं. रेगिस्तान में रेत की वजह से चलना काफी मुश्किल होता है. साथ ही कई जगह रेत के पहाड़ होते हैं.
मैराथन में कंटेंस्टेंट को अकेले रहना होता है
सहारा का तापमान काफी होने की वजह से भीषण गर्मी और धूप का सामना करते हुए पैदल चलने की वजह से उनके पैरों में छाले भी आ गए थे. यही हाल वहां मौजूद हर शख्स का था. मैराथन में कंटेंस्टेंट को अकेले रहना होता है ना उसके पास फोन होता है और न ही अपने परिवार का कोई सदस्य वहां मौजूद होता है. रोजाना एक टारगेट सेट किया होता है उसको पूरा करना होता है.
मैराथन में कंटेंस्टेंट को अकेले रहना होता है
race: टारगेट पूरा नहीं करने पर कंटेस्टेंट डिसक्वालीफाई हो जाता है. कंटेस्टेंट को अपना सामान भी खुद अपने साथ रखना होता है यानी वो अपनी पीठ पर अपना बैग जिसमें खाने पीने का थोड़ा समान, पानी और टेंट लेकर चलते है मैराथन में कंटेंस्टेंट को अकेले रहना होता है करते हैं.
मैराथन की प्रेरणा नेटफ्लिक्स पर मौजूद एक सीरीज लूजर्स से मिली
आगे बताती है कि उन्हें इस मैराथन की प्रेरणा नेटफ्लिक्स पर मौजूद एक सीरीज लूजर्स से मिली जिसमें जो किरदार होता है वो इसी मैराथन race में हिस्सा लेता है लेकिन वो कहीं खो जाता है और बिना पानी और खाने के 9 दिनों तक अपना गुजर बसर करता है.
सबके लिए एक इंस्पिरेशन बनकर बहार आयी
ये देख कर श्वेता ने भी तय किया उन्हे भी मैराथन में हिस्सा लेना है. ये बात साल 2019 की है लेकिन उस समय श्वेता का पैर टूट गया था और फिर कोरोना काल शुरू हो गया इसी वजह से उन्हें 3 साल का वक्त लग गया.पर इन्होने हार ना मानी और सबके लिए एक इंस्पिरेशन बनकर बहार आयी।